पिछले दिनों कानपुर का 150 साल पुराना गंगापुल टूट गया। इस पुल पर से कई बार गुजरे हैं। अनेक यादें जुड़ी हैं। पुल गिरने की खबर मिलने पर देखने गए पुल। शहर होते हुए घर से दूरी 15 किलोमीटर। गंगाबैराज की तरफ़ से जाते तो दूरी 23 किलोमीटर दिखा रहा था। समय लगभग बराबर। शहर होते हुए गए। जहां से पुल शुरू होता है वहीं पर गाड़ी सड़क किनारे ही खड़ी कर दी। रेती में पुल के नीचे -नीचे चलते हुए उस हिस्से की तरफ़ गए जो हिस्सा टूटा था।
पुल का टूटा हुआ हिस्सा नदी के पानी में धराशायी सा लेटा था। क्या पता वह गाना भी गा रहा हो -'कर चले हम फ़िदा जान-ओ-तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले ये जगह साथियों।' पुल के आसपास पक्षी तेज आवाज़ में चहचहाते हुए शायद पुल के बारे में ही चर्चा कर रहे थे।
एक दूधिया अपने दूध के कनस्तर पानी में धोकर रेती में औंधाए रखकर गंगा स्नान कर रहा था। स्नान करके नदी से निकलते हुए एक बुजुर्ग को नदी किनारे निपटते देखकर भुनभुनाते हुए कहने लगा -' यह भी नही कि गंगाजी से ज़रा दूर होकर निपटें। एकदम किनारे ही गंदगी करने बैठ गए।'
उसके भुनभुनाने के अन्दाज़ से लग रहा था कि उसकी मंशा केवल खुद को और उसके बग़ल से गुजरते हमको सुनाने तक सीमित थी। थोड़ा ज़ोर से बोलता तो आवाज़ उस निपटते बुजुर्ग तक पहुँच जाती। लेकिन उसकी मंशा शायद भुनभनाने तक ही सीमित थी। बुजुर्ग उसकी भुनभुनाहट से निर्लिप्त निपटने में तल्लीन रहा।
बाद में उस बुजुर्ग के पास से गुजरते हुए लगा कि उसको बैठने में कुछ तकलीफ सी थी। बड़ी मुश्किल से बैठे-बैठे सरकते हुए वह नदी की तरफ़ जाता दिख रहा था। उसकी तकलीफ़ का अन्दाज़ अगर दूध वाले को होता तो शायद वह कम भुनभुनाता।
वहीं चार छोटे-छोटे बच्चे रेत पर खेल रहे थे। उनमें तीन बच्चे थे , एक बच्ची। पास जाकर देखा तो वे रेत को नदी के पानी से गीला करके बालू के खिलौने बना रहे थे। 'कौन सा खिलौना बना रहे हो ?' पूछने पर बच्चों ने बताया -'खाना पकाने के खिलौने बना रहे हैं।' शुरुआत चौके से हुयी। चौका बनाने के बाद उनमें से एक बच्चा थाली या परात जैसा कुछ बना रहा था।
बच्चों ने आपस में एक-दूसरे के बारे में बताया। बच्ची थोड़ा मुखर सी लगी। उसके बारे में एक बच्चे ने बताया -'ये गाली बकती है।' 'क्या गाली बकती है ? ' पूछने पर बच्चे ने बताया कि क्या-क्या गाली बकती है बच्ची। आम जन-जीवन में रोज़मर्रा की गालियाँ बताई बच्चे ने। बच्चों की बातचीत सुन सकते हैं यहाँ वीडियो में।
बच्चों को खेलता छोड़कर हम आसपास थोड़ा टहले। लोग रेत में अपने-अपने हिसाब से ज़मीन घेरकर गर्मी के फल उगाने की तैयारी कर रहे। गोबर की खाद भी दिखी वहीं। हम एक घेरे में घुस गए यह सोचते हुए कि आगे निकलने का रास्ता होगा। लेकिन जगह इस तरह से घिरी हुई थी कि उसको पार करने का कोई जुगाड़ नहीं था। हमको वापस लौटना पड़ा।
लौटकर देखा तो बच्चे खिलौना बनाने के काम पूरा करके या स्थगित करके नदी में नहा रहे थे। हमारे पास पहुँचने तक वो बाहर निकल आए। हमने उनके फ़ोटो खींचने के लिए पूछा तो सब तैयार हो गए। पोज बनाकर भी खड़े हो गए। एक बच्चे ने उँगली से 'V' का निशान भी बनाया। उसको देखकर बच्ची ने भी उँगली 'V' वाले अन्दाज़ में फैला ली। बच्ची ने पहले 'V' का निशान ऊपर की तरफ़ करके बनाया। बाद में दोनों आखों को घेरते हुए 'V' का निशान बना लिया।
फ़ोटो देखकर बच्चे खुश हो गए। एक ने उत्साहित होकर कहा -'अबे अब हमारे फ़ोटो वायरल हो जाएँगे। इंस्टाग्राम पर लगाएँगे अंकल।' सब बच्चों ने चहकते हुए फिर से फ़ोटो देखे और दोबारा पोज देकर फ़ोटो खिंचवाए। वे खुश हो गए। मेरे मन हुआ कि काश ये फ़ोटो उन बच्चों को दे पाते। अब सोच रहे हैं कि बनवाएँगे फ़ोटो। कभी शुक्लागंज गए तो लेते जाएँगे। दे देंगे बच्चों को।
बच्चों ने बताया कि उनमें से तीन बच्चे स्कूल जाते हैं। एक सबसे छोटा बच्चा स्कूल नहीं जाता। उसके बारे में बच्चों ने कहा -'ये स्कूल नहीं जाता , गाली बकता रहता है।' मुझे ताज्जुब हुआ कि पाँच-दस मिनट में ही गाली देने की शिकायत बच्ची से हटकर एक बच्चे की तरफ़ मुड़ गयी।
बच्चों के नाम पूछे तो पता चला उनके नाम जैन खान, बिलाल खान , शाहबाज़ अली खान और आलिया खान हैं। सब एक ही परिवार के बच्चे हैं। सगे ,चचेरे भाई-बहन। शाहबाज़ अली खान ने अपना नाम और लम्बा बताया था। लेकिन बाद में अपना नाम शाहबाज़ अली खान तक ही सीमित करने को राज़ी हो गया। बच्चे शुक्लागंज में गोताखोर मोहल्ले में रहते हैं। शायद उनके घर वाले नाव चलाने का काम करते हों। हो सकता है कोई गोताखोर भी हों।
हमने बच्चों से पूछा -'कोई कविता या कोई शायरी आती है ? आती हो तो सुनाओ।'
बच्चों ने फ़ौरन एक शायरी सुनाई ।
किनारे पे न चलो, किनारा टूट जाएगा ,
चोट तुम्हारे लगेगी , दिल हमारा टूट जाएगा।
सबसे पहले शायरी शाहबाज़ अली खान और आलिया ने सुनाई। फिर सभी ने बारी -बारी यही शायरी दोहराई। हड़बड़ी में शायरी के लफ़्ज़ इधर-उधर होते रहे। बच्चे एक-दूसरे को 'अरे चुप ' कहते हुए अपने अन्दाज़ में शायरी सुनाते रहे।
बच्चों से हमने कोई और भी कविता या शायरी सुनाने को कहा तो उन्होंने कहा -'हमको यही आती है।'
बच्चे आपस में खेलने में मशगूल हो गए। हम वापस लौट लिए।
Writer - Anoop Shukla
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