जब पहाड़ चुप हो गए — प्रकृति से छेड़खानी का सच
पहाड़ी गाँव का 12 साल का लड़का “अर्नव” हर शाम एक ही जगह बैठता था—अपने घर के ऊपर वाले पत्थर पर, जहाँ से पूरा घाटी दिखती थी।
बरसों से उसका खेल था कि दूर-दूर तक फैली पहाड़ियों को गिनना। हर बार संख्या वही रहती—उसे लगता पहाड़ हमेशा रहेंगे।
लेकिन उस साल पहली बार, उसने अपने पिता से पूछा—
“बाबा, वो वाली पहाड़ी कहाँ गई? कल थी… आज नहीं दिख रही।”
पिता चुप रहे।
पहाड़ी हट नहीं गई थी… उसे काट दिया गया था—पत्थर निकालने वाली मशीनों ने, सड़क चौड़ी करने वाले ठेकेदारों ने, और जंगल की लकड़ियाँ बेचने वाले लोगों ने।
पहाड़ नहीं चिल्लाते, लेकिन जब उनका दर्द जमीन तक पहुँचता है—तो भूकंप बन जाता है, भूस्खलन बन जाता है, खाली पड़े झरने बन जाते हैं।
अर्नव ने पहली बार समझा कि प्रकृति जब चुप होती है… तो सबसे ऊँची आवाज़ उसी की होती है।
अगर हमारे पहाड़ खत्म हो गए—तो क्या होगा?
पहाड़ सिर्फ पत्थरों की दीवारें नहीं होते।
वे धरती के जल-स्रोत, मौसम-नियंत्रक और जैव-विविधता के स्तंभ होते हैं।
जब ये गायब होते हैं, तो असर सीधा आम लोगों की जिंदगी पर पड़ता है।
1. पानी की किल्लत—क्योंकि पहाड़ ही नदी बनाते हैं
हिमालय से दुनिया की 10 सबसे बड़ी नदियाँ निकलती हैं।
इन पर 1.5 अरब लोग निर्भर हैं।
पहाड़ टूटेंगे → जल स्रोत सूखेंगे → शहरों में भी पानी की कमी तेज़ होगी।
2. भूस्खलन और भूकंपीय खतरे
भारत में पहाड़ी इलाकों में हर साल 200 से ज़्यादा बड़े भूस्खलन दर्ज होते हैं।
जब पहाड़ काटे जाते हैं, उनकी प्राकृतिक पकड़ खत्म हो जाती है।
उसका असर—सड़कें टूटती हैं, गाँव निगल जाते हैं, यात्राएँ असुरक्षित हो जाती हैं।
3. जलवायु का बिगड़ना
पहाड़ तापमान नियंत्रित करते हैं।
अगर ये खत्म हुए, तो मैदानी क्षेत्रों में हीटवेव 2 से 3 गुना बढ़ सकती है (UN Mountain Partnership रिपोर्ट)।
पहाड़ों के बिना मानसून का संतुलन भी टूट जाता है।
4. जैव-विविधता का विनाश
वैश्विक जैव-विविधता का 25% से अधिक हिस्सा पहाड़ी क्षेत्रों में है—दुनिया के हजारों पौधे, पक्षी, जंतु सिर्फ वहीं पाए जाते हैं।
एक पहाड़ गिरा, मतलब पूरा एक छोटा “जीवन-विश्व” खत्म।
5. पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था को झटका
भारत में पहाड़ी पर्यटन पर 8% से अधिक आबादी की आजीविका निर्भर है।
पहाड़ टूटे → जंगल घटे → बर्फ कम हुई → पर्यटन कमजोर हुआ → कमाई रुक गई।
प्रकृति से छेड़खानी कितनी खतरनाक है? — तीन उदाहरण
1. चमोली का ग्लेशियर हादसा (2021)
अतिरिक्त निर्माण और तेजी से पिघलते ग्लेशियर ने 200+ लोगों की जान ली।
पहाड़ की संवेदनशीलता को अनदेखा करने का परिणाम।
2. जोशीमठ धंसाव (2022–23)
अंधाधुंध निर्माण और ढलानों के भार से पूरा शहर धीरे-धीरे जमीन में समाता गया।
यह जीवंत उदाहरण है कि पहाड़ कितने नाज़ुक हैं।
3. नेपाल और हिमालयी क्षेत्र की लगातार भूकंपीय सक्रियता
धरती की टेक्टॉनिक प्लेटें पहाड़ों की नींव हैं।
जितना अधिक छेड़छाड़—उतनी अधिक अस्थिरता।
दुनिया के लिए पहाड़ क्यों जरूरी हैं? — कुछ बड़े तथ्य
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विश्व की 15% आबादी सीधे पहाड़ों में रहती है।
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लेकिन 50% आबादी का भोजन, पानी, मौसम—किसी न किसी रूप में पहाड़ों पर निर्भर है।
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दुनिया की लगभग एक-तिहाई मीठे पानी की आपूर्ति पहाड़ी क्षेत्रों से आती है।
यानी पहाड़ सिर्फ “ऊँचाई” नहीं—मानव सभ्यता की नींव हैं।
अर्नव की कहानी काल्पनिक है, लेकिन उसकी चिंता असली है।
पहाड़ जब खत्म होते हैं, तो सिर्फ भूगोल नहीं बदलता—मनुष्य का भविष्य बदल जाता है।
प्रकृति अपनी भाषा में चेतावनी देती है, और हर चेतावनी वही कहती है:
जितनी छेड़छाड़, उतना विनाश।
जितनी सुरक्षा, उतना अस्तित्व।
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