भारत में जवाबदेही: नागरिक, न्यायपालिका और कार्यपालिका के लिए एक रोडमैप
लोकतंत्र सिर्फ़ वोट देने तक सीमित नहीं है। इसका असली मूल्य तब आता है जब हर स्तर पर जवाबदेही स्पष्ट और त्वरित हो। आम आदमी अक्सर यह महसूस करता है कि फैसले तो बड़े-बड़े कक्षों में होते हैं, लेकिन उनके परिणामों की जिम्मेदारी अस्पष्ट रहती है। यही वह जगह है जहाँ न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका को अपनी भूमिकाएँ स्पष्ट करने और एक-दूसरे के संतुलन को बनाए रखने की आवश्यकता है।
न्यायपालिका केवल विवादों का निप
टारा नहीं करती, बल्कि यह नागरिक और सरकार के बीच संतुलन का प्रहरी भी है। लेकिन लंबित मामलों की संख्या और जटिल प्रक्रियाएँ अक्सर आम आदमी की उम्मीदों से धीमी साबित होती हैं। एक ऐसा सिस्टम होना चाहिए जिसमें हर केस का स्टेटस डिजिटल रूप से उपलब्ध हो, सुनवाई समयबद्ध हो और नियमित ऑडिट रिपोर्ट आम जनता के लिए सार्वजनिक हों। इससे ना केवल पारदर्शिता बढ़ेगी, बल्कि नागरिकों को यह भरोसा भी मिलेगा कि न्याय प्रणाली उनके पक्ष में सक्रिय है।
कार्यपालिका की भूमिका भी न्यायपालिका से कम महत्वपूर्ण नहीं है। योजनाएँ बनाना आसान है, लेकिन उनका धरातल पर प्रभावी क्रियान्वयन और समय पर परिणाम देना असली जवाबदेही है। विभागीय जटिलताओं और भ्रष्टाचार की वजह से अक्सर योजनाएँ धीमी पड़ जाती हैं या नागरिकों तक नहीं पहुँच पातीं। इसे सुधारने के लिए सर्विस चार्टर, जनसुनवाई मंच और प्रदर्शन आधारित जवाबदेही लागू की जानी चाहिए। इससे अधिकारी केवल नियमों का पालन नहीं करेंगे, बल्कि उनके क्रियान्वयन की प्रभावशीलता का प्रत्यक्ष जिम्मेदार बनेंगे।
विधायिका का काम कानून बनाना भर नहीं है; उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बनाई गई नीतियाँ वास्तव में धरातल पर लागू हों और उनका प्रभाव सकारात्मक हो। इसके लिए Impact Assessment Reports और पारदर्शी बजट प्रक्रिया जरूरी है। इससे न केवल नीतियाँ कारगर होंगी, बल्कि नागरिकों का विश्वास भी बढ़ेगा कि उनके हितों की रक्षा करने वाले निर्णय सही दिशा में हैं।
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नागरिक इस पूरे तंत्र का अंतिम स्तंभ हैं। उत्तरदायित्व तभी वास्तविक होता है जब आम आदमी अपनी आवाज़ उठा सके और उसका फीडबैक सिस्टम के जरिए फॉलोअप हो। नागरिकों को अपने अधिकारों और सरकारी प्रक्रियाओं की जानकारी होनी चाहिए। सामूहिक निगरानी, मीडिया, NGO और नागरिक समूह इस सिस्टम को सक्रिय और जवाबदेह बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
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सच्ची जवाबदेही तभी संभव है जब न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका अपने-अपने कर्तव्यों को समझें और पूरी पारदर्शिता के साथ निष्पादन करें, और नागरिक इसमें सक्रिय भागीदार बने। इसका मतलब है कि कोई भी निर्णय निजी विवेक पर नहीं बल्कि सार्वजनिक जवाबदेही के आधार पर लिया जाए। यदि यह रोडमैप लागू हो गया, तो निर्णय लेने की प्रक्रिया पारदर्शी होगी, सुधारात्मक कदम त्वरित उठाए जा सकेंगे और नागरिकों का लोकतंत्र में भरोसा मज़बूत होगा। जवाबदेही केवल नियमों में नहीं है; यह संगठित प्रक्रियाओं, त्वरित क्रियान्वयन और सक्रिय नागरिक भागीदारी में निहित है। जब यह पूरा होगा, तभी लोकतंत्र का मूल भाव — जनता का शासन — वास्तविक रूप में साकार होगा।
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