ज्ञान का विस्फोट, कंटेंट की बमबारी: थकता हुआ मानव मस्तिष्क


 

ज्ञान का विस्फोट, कंटेंट की बमबारी: थकता हुआ मानव मस्तिष्क


हम उस दौर में जी रहे हैं जहाँ हर सुबह मोबाइल की स्क्रीन पर सूचनाओं की बाढ़ आती है। खबरें, वीडियो, पॉडकास्ट, ट्वीट्स, रील्स — हर प्लेटफ़ॉर्म हमें कुछ “नया” दिखाने की होड़ में है। यह युग “Information Age” से आगे निकलकर “Information Overload Age” बन चुका है। लेकिन सवाल यह है — क्या यह निरंतर ज्ञान का विस्फोट हमें वाकई समझदार बना रहा है, या बस थका हुआ, बिखरा हुआ और असंवेदनशील?

कंटेंट का विस्फोट और थकान का जन्म

एक समय था जब ज्ञान अर्जन एक प्रक्रिया थी — किताबें पढ़ना, अनुभव जुटाना, संवाद करना। अब यह “स्क्रॉल” बन गया है। हर 10 सेकंड में एक नया वीडियो, हर मिनट एक नई राय, हर घंटे एक नई ट्रेंडिंग खबर।

पर मानव मस्तिष्क की क्षमता सीमित है। जब हम लगातार सूचनाओं से बमबारी झेलते हैं, तो दिमाग़ का फिल्टर सिस्टम — यानी संज्ञानात्मक एकाग्रता (Cognitive Focus) — कमजोर होने लगता है।

परिणाम यह होता है कि —

जानकारी अल्पकालिक स्मृति (short-term memory) में अटक जाती है।

सोचने की गहराई घटती है।

रचनात्मकता परतों में नहीं, बल्कि चमकदार टुकड़ों में सिमट जाती है।

‘नॉलेज बर्स्ट’ का भ्रम

आज हम “Knowledge” को consumption मान बैठे हैं, जबकि वास्तविक ज्ञान assimilation होता है।

किसी भी विचार को समझने, उससे जुड़ने और उसे आत्मसात करने के लिए धीमी गति की ज़रूरत होती है।

पर आज की दुनिया में हर चीज़ “burst” मोड में है — knowledge burst, content burst, emotional burst, even opinion burst.

नतीजा: गहराई की जगह गति का महत्व बढ़ गया है।

सूचना की चमक में अर्थ का क्षय

हर प्लेटफ़ॉर्म का एल्गोरिद्म “attention” चाहता है, न कि “understanding।”

इसलिए हमें वो नहीं दिखाया जाता जो जरूरी है, बल्कि वो दिखाया जाता है जो “रोक सके” — shock, glamour, anger या nudity।

धीरे-धीरे यह आदत हमारी सोच को सतही बना देती है।

हम गहराई से अधिक “सेंसरी स्टिम्युलेशन” के आदी हो रहे हैं — यानी वह सब जो तुरंत असर करे, चाहे उसका कोई स्थायी अर्थ न हो।

जब सब कुछ ज़्यादा हो जाता है

Content Bombardment का सबसे बड़ा खतरा यह है कि हर चीज़ eventually dull हो जाती है।

लगातार उत्तेजना → संवेदना की मृत्यु।

लगातार नयी चीज़ें → स्थायी मूल्य का अभाव।

लगातार शोर → सन्नाटे की कीमत का खोना।

यही कारण है कि अब लोग कह रहे हैं — “Social media detox,” “Digital fasting,” “Slow living.”

यह सब आधुनिक युग की नई आध्यात्मिकता है — कम जानना, ज़्यादा समझना।

अब जरूरत है ‘Meaning Burst’ की, न कि ‘Content Burst’ की

भविष्य उन्हीं का होगा जो ज्ञान को “सामग्री” नहीं बल्कि “संवाद” समझेंगे।

जो हर सूचना के बीच ठहरना सीखेंगे।

जो एक विचार को 10 मिनट तक सोच सकेंगे, बजाय 10 विचारों को एक मिनट में स्क्रॉल करने के।

क्योंकि आखिरकार, ज्ञान की बमबारी नहीं, उसकी सादगी ही हमारी चेतना को बचाएगी।

कंटेंट और जानकारी के इस विस्फोट में, हम जितना अधिक जानने की कोशिश कर रहे हैं, उतना ही “कम समझने” लगे हैं।

भविष्य का असली बौद्धिक विलास “शांति और चयन” होगा — जहाँ हम तय करेंगे कि क्या पढ़ना, क्या छोड़ना, और किस चीज़ को बस महसूस करना है।


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